पहले इन रिश्तेदारियों पर एक नज़र डालिये, नापाक गठजोड़

पहले इन रिश्तेदारियों पर एक नज़र डालिये, तब आप खुद ही समझ जायेंगे कि
कैसे और क्यों “मीडिया का अधिकांश हिस्सा” हिन्दुओं और हिन्दुत्व का
विरोधी है, किस प्रकार इन लोगों ने एक “नापाक गठजोड़” तैयार कर लिया है,
किस तरह ये सब लोग मिलकर सत्ता संस्थान के शिखरों के करीब रहते हैं, किस
तरह से इन प्रभावशाली(?) लोगों का सरकारी नीतियों में दखल होता है… आदि।
पेश हैं रिश्ते ही रिश्ते – (दिल्ली की दीवारों पर लिखा होता है वैसे
वाले नहीं, ये हैं असली रिश्ते)
-सुज़ाना अरुंधती रॉय, प्रणव रॉय (नेहरु डायनेस्टी टीवी- NDTV) की भांजी
हैं।-प्रणव रॉय “काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन्स” के इंटरनेशनल सलाहकार बोर्ड
के सदस्य हैं।-इसी बोर्ड के एक अन्य सदस्य हैं मुकेश अम्बानी।-प्रणव रॉय
की पत्नी हैं राधिका रॉय।-राधिका रॉय, बृन्दा करात की बहन हैं।-बृन्दा
करात, प्रकाश करात (CPI) की पत्नी हैं।
-प्रकाश करात चेन्नै के “डिबेटिंग क्लब” के सदस्य थे।-एन राम, पी
चिदम्बरम और मैथिली शिवरामन भी इस ग्रुप के सदस्य थे।-इस ग्रुप ने एक
पत्रिका शुरु की थी “रैडिकल रीव्यू”।-CPI(M) के एक वरिष्ठ नेता सीताराम
येचुरी की पत्नी हैं सीमा चिश्ती।-सीमा चिश्ती इंडियन एक्सप्रेस की
“रेजिडेण्ट एडीटर” हैं।-बरखा दत्त NDTV में काम करती हैं।-बरखा दत्त की
माँ हैं श्रीमती प्रभा दत्त।-प्रभा दत्त हिन्दुस्तान टाइम्स की मुख्य
रिपोर्टर थीं।-राजदीप सरदेसाई पहले NDTV में थे, अब CNN-IBN के हैं
(दोनों ही मुस्लिम चैनल हैं)।-राजदीप सरदेसाई की पत्नी हैं सागरिका
घोष।-सागरिका घोष के पिता हैं दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर
घोष।-सागरिका घोष की आंटी रूमा पॉल हैं।-रूमा पॉल उच्चतम न्यायालय की
पूर्व न्यायाधीश हैं।-सागरिका घोष की दूसरी आंटी अरुंधती घोष
हैं।-अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि
हैं।-CNN-IBN का “ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क” (GBN) से व्यावसायिक समझौता
है।-GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है।-NDTV भारत का
एकमात्र चैनल है को “अधिकृत रूप से” पाकिस्तान में दिखाया जाता है।-दिलीप
डिसूज़ा PIPFD (Pakistan-India Peoples’ Forum for Peace and Democracy)
के सदस्य हैं।-दिलीप डिसूज़ा के पिता हैं जोसेफ़ बेन डिसूज़ा।-जोसेफ़ बेन
डिसूज़ा महाराष्ट्र सरकार के पूर्व सचिव रह चुके हैं।
-तीस्ता सीतलवाड भी PIPFD की सदस्य हैं।-तीस्ता सीतलवाड के पति हैं जावेद
आनन्द।-जावेद आनन्द एक कम्पनी सबरंग कम्युनिकेशन और एक संस्था “मुस्लिम
फ़ॉर सेकुलर डेमोक्रेसी” चलाते हैं।-इस संस्था के प्रवक्ता हैं जावेद
अख्तर।-जावेद अख्तर की पत्नी हैं शबाना आज़मी।
-करण थापर ITV के मालिक हैं।-ITV बीबीसी के लिये कार्यक्रमों का भी
निर्माण करती है।-करण थापर के पिता थे जनरल प्राणनाथ थापर (1962 का चीन
युद्ध इन्हीं के नेतृत्व में हारा गया था)।-करण थापर बेनज़ीर भुट्टो और
ज़रदारी के बहुत अच्छे मित्र हैं।-करण थापर के मामा की शादी नयनतारा सहगल
से हुई है।-नयनतारा सहगल, विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी हैं।-विजयलक्ष्मी
पंडित, जवाहरलाल नेहरू की बहन हैं।
-मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मुख्य प्रवक्ता और कार्यकर्ता
हैं।-नबाआं को मदद मिलती है पैट्रिक मेकुल्ली से जो कि “इंटरनेशनल रिवर्स
नेटवर्क (IRN)” संगठन में हैं।-अंगना चटर्जी IRN की बोर्ड सदस्या
हैं।-अंगना चटर्जी PROXSA (Progressive South Asian Exchange Network) की
भी सदस्या हैं।-PROXSA संस्था, FOIL (Friends of Indian Leftist) से पैसा
पाती है।-अंगना चटर्जी के पति हैं रिचर्ड शेपायरो।-FOIL के सह-संस्थापक
हैं अमेरिकी वामपंथी बिजू मैथ्यू।-राहुल बोस (अभिनेता) खालिद अंसारी के
रिश्ते में हैं।-खालिद अंसारी “मिड-डे” पब्लिकेशन के अध्यक्ष हैं।-खालिद
अंसारी एमसी मीडिया लिमिटेड के भी अध्यक्ष हैं।-खालिद अंसारी, अब्दुल
हमीद अंसारी के पिता हैं।-अब्दुल हमीद अंसारी कांग्रेसी हैं।-एवेंजेलिस्ट
ईसाई और हिन्दुओं के खास आलोचक जॉन दयाल मिड-डे के दिल्ली संस्करण के
प्रभारी हैं।
-नरसिम्हन राम (यानी एन राम) दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार “द हिन्दू” के
मुख्य सम्पादक हैं।-एन राम की पहली पत्नी का नाम है सूसन।-सूसन एक आयरिश
हैं जो भारत में ऑक्सफ़ोर्ड पब्लिकेशन की इंचार्ज हैं।-विद्या राम, एन
राम की पुत्री हैं, वे भी एक पत्रकार हैं।-एन राम की हालिया पत्नी मरियम
हैं।-त्रिचूर में आयोजित कैथोलिक बिशपों की एक मीटिंग में एन राम,
जेनिफ़र अरुल और केएम रॉय ने भाग लिया है।-जेनिफ़र अरुल, NDTV की दक्षिण
भारत की प्रभारी हैं।-जबकि केएम रॉय “द हिन्दू” के संवाददाता हैं।-केएम
रॉय “मंगलम” पब्लिकेशन के सम्पादक मंडल सदस्य भी हैं।-मंगलम ग्रुप
पब्लिकेशन एमसी वर्गीज़ ने शुरु किया है।-केएम रॉय को “ऑल इंडिया कैथोलिक
यूनियन लाइफ़टाइम अवार्ड” से सम्मानित किया गया है।-“ऑल इंडिया कैथोलिक
यूनियन” के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं जॉन दयाल।-जॉन दयाल “ऑल इंडिया
क्रिश्चियन काउंसिल”(AICC) के सचिव भी हैं।-AICC के अध्यक्ष हैं डॉ
जोसेफ़ डिसूज़ा।-जोसेफ़ डिसूज़ा ने “दलित फ़्रीडम नेटवर्क” की स्थापना की
है।-दलित फ़्रीडम नेटवर्क की सहयोगी संस्था है “ऑपरेशन मोबिलाइज़ेशन
इंडिया” (OM India)।-OM India के दक्षिण भारत प्रभारी हैं कुमार
स्वामी।-कुमार स्वामी कर्नाटक राज्य के मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी
हैं।-OM India के उत्तर भारत प्रभारी हैं मोजेस परमार।-OM India का
लक्ष्य दुनिया के उन हिस्सों में चर्च को मजबूत करना है, जहाँ वे अब तक
नहीं पहुँचे हैं।-OMCC दलित फ़्रीडम नेटवर्क (DFN) के साथ काम करती
है।-DFN के सलाहकार मण्डल में विलियम आर्मस्ट्रांग शामिल हैं।-विलियम
आर्मस्ट्रांग, कोलोरेडो (अमेरिका) के पूर्व सीनेटर हैं और वर्तमान में
कोलोरेडो क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेण्ट हैं। यह यूनिवर्सिटी
विश्व भर में ईसा के प्रचार हेतु मुख्य रणनीतिकारों में शुमार की जाती
है।-DFN के सलाहकार मंडल में उदित राज भी शामिल हैं।-उदित राज के जोसेफ़
पिट्स के अच्छे मित्र भी हैं।-जोसेफ़ पिट्स ने ही नरेन्द्र मोदी को वीज़ा
न देने के लिये कोंडोलीज़ा राइस से कहा था।-जोसेफ़ पिट्स “कश्मीर फ़ोरम”
के संस्थापक भी हैं।-उदित राज भारत सरकार के नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल
(राष्ट्रीय एकता परिषद) के सदस्य भी हैं।-उदित राज कश्मीर पर बनी एक
अन्तर्राष्ट्रीय समिति के सदस्य भी हैं।-सुहासिनी हैदर, सुब्रह्मण्यम
स्वामी की पुत्री हैं।-सुहासिनी हैदर, सलमान हैदर की पुत्रवधू हैं।-सलमान
हैदर, भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं, चीन में राजदूत भी रह चुके
हैं।
-रामोजी ग्रुप के मुखिया हैं रामोजी राव।-रामोजी राव “ईनाडु” (सर्वाधिक
खपत वाला तेलुगू अखबार) के संस्थापक हैं।-रामोजी राव ईटीवी के भी मालिक
हैं।-रामोजी राव चन्द्रबाबू नायडू के परम मित्रों में से हैं।
-डेक्कन क्रॉनिकल के चेयरमैन हैं टी वेंकटरमन रेड्डी।-रेड्डी साहब
कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं।-एमजे अकबर डेक्कन क्रॉनिकल और
एशियन एज के सम्पादक हैं।-एमजे अकबर कांग्रेस विधायक भी रह चुके
हैं।-एमजे अकबर की पत्नी हैं मल्लिका जोसेफ़।-मल्लिका जोसेफ़, टाइम्स ऑफ़
इंडिया में कार्यरत हैं।
-वाय सेमुअल राजशेखर रेड्डी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।-सेमुअल
रेड्डी के पिता राजा रेड्डी ने पुलिवेन्दुला में एक डिग्री कालेज व एक
पोलीटेक्नीक कालेज की स्थापना की।-सेमुअल रेड्डी ने कहा है कि आंध्रा
लोयोला कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उक्त
दोनों कॉलेज लोयोला समूह को दान में दे दिये।-सेमुअल रेड्डी की बेटी हैं
शर्मिला।-शर्मिला की शादी हुई है “अनिल कुमार” से। अनिल कुमार भी एक
धर्म-परिवर्तित ईसाई हैं जिन्होंने “अनिल वर्ल्ड एवेंजेलिज़्म” नामक
संस्था शुरु की और वे एक सक्रिय एवेंजेलिस्ट (कट्टर ईसाई धर्म प्रचारक)
हैं।-सेमुअल रेड्डी के पुत्र जगन रेड्डी युवा कांग्रेस नेता हैं।-जगन
रेड्डी “जगति पब्लिकेशन प्रा. लि.” के चेयरमैन हैं।-भूमना करुणाकरा
रेड्डी, सेमुअल रेड्डी की करीबी हैं।-करुणाकरा रेड्डी, तिरुमला तिरुपति
देवस्थानम की चेयरमैन हैं।-चन्द्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि “लैंको
समूह” को जगति पब्लिकेशन्स में निवेश करने हेतु दबाव डाला गया था।-लैंको
कम्पनी समूह, एल श्रीधर का है।-एल श्रीधर, एल राजगोपाल के भाई हैं।-एल
राजगोपाल, पी उपेन्द्र के दामाद हैं।-पी उपेन्द्र केन्द्र में कांग्रेस
के मंत्री रह चुके हैं।-सन टीवी चैनल समूह के मालिक हैं कलानिधि
मारन-कलानिधि मारन एक तमिल दैनिक “दिनाकरन” के भी मालिक हैं।-कलानिधि के
भाई हैं दयानिधि मारन।-दयानिधि मारन केन्द्र में संचार मंत्री
थे।-कलानिधि मारन के पिता थे मुरासोली मारन।-मुरासोली मारन के चाचा हैं
एम करुणानिधि (तमिलनाडु के मुख्यमंत्री)।-करुणानिधि ने ‘कैलाग्नार टीवी”
का उदघाटन किया।-कैलाग्नार टीवी के मालिक हैं एम के अझागिरी।-एम के
अझागिरी, करुणानिधि के पुत्र हैं।-करुणानिधि के एक और पुत्र हैं एम के
स्टालिन।-स्टालिन का नामकरण रूस के नेता के नाम पर किया गया।-कनिमोझि,
करुणानिधि की पुत्री हैं, और केन्द्र में राज्यमंत्री हैं।-कनिमोझी, “द
हिन्दू” अखबार में सह-सम्पादक भी हैं।-कनिमोझी के दूसरे पति जी अरविन्दन
सिंगापुर के एक जाने-माने व्यक्ति हैं।-स्टार विजय एक तमिल चैनल है।-विजय
टीवी को स्टार टीवी ने खरीद लिया है।-स्टार टीवी के मालिक हैं रूपर्ट
मर्डोक।
-Act Now for Harmony and Democracy (अनहद) की संस्थापक और ट्रस्टी हैं
शबनम हाशमी।-शबनम हाशमी, गौहर रज़ा की पत्नी हैं।-“अनहद” के एक और
संस्थापक हैं के एम पणिक्कर।-के एम पणिक्कर एक मार्क्सवादी इतिहासकार
हैं, जो कई साल तक ICHR में काबिज रहे।-पणिक्कर को पद्मभूषण भी
मिला।-हर्ष मन्दर भी “अनहद” के संस्थापक हैं।-हर्ष मन्दर एक मानवाधिकार
कार्यकर्ता हैं।-हर्ष मन्दर, अजीत जोगी के खास मित्र हैं।-अजीत जोगी,
सोनिया गाँधी के खास हैं क्योंकि वे ईसाई हैं और इन्हीं की अगुआई में
छत्तीसगढ़ में जोरशोर से धर्म-परिवर्तन करवाया गया और बाद में दिलीपसिंह
जूदेव ने परिवर्तित आदिवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी करवाई।-कमला
भसीन भी “अनहद” की संस्थापक सदस्य हैं।-फ़िल्मकार सईद अख्तर मिर्ज़ा
“अनहद” के ट्रस्टी हैं।
-मलयालम दैनिक “मातृभूमि” के मालिक हैं एमपी
वीरेन्द्रकुमार-वीरेन्द्रकुमार जद(से) के सांसद हैं (केरल से)-केरल में
देवेगौड़ा की पार्टी लेफ़्ट फ़्रण्ट की साझीदार है।-शशि थरूर पूर्व
राजनैयिक हैं।-चन्द्रन थरूर, शशि थरूर के पिता हैं, जो कोलकाता की
आनन्दबाज़ार पत्रिका में संवाददाता थे।-चन्द्रन थरूर ने 1959 में द
स्टेट्समैन” की अध्यक्षता की।-शशि थरूर के दो जुड़वाँ लड़के ईशान और
कनिष्क हैं, ईशान हांगकांग में “टाइम्स” पत्रिका के लिये काम करते
हैं।-कनिष्क लन्दन में “ओपन डेमोक्रेसी” नामक संस्था के लिये काम करते
हैं।-शशि थरूर की बहन शोभा थरूर की बेटी रागिनी (अमेरिकी पत्रिका)
“इंडिया करंट्स” की सम्पादक हैं।-परमेश्वर थरूर, शशि थरूर के चाचा हैं और
वे “रीडर्स डाइजेस्ट” के भारत संस्करण के संस्थापक सदस्य हैं।
-शोभना भरतिया हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की अध्यक्षा हैं।-शोभना भरतिया
केके बिरला की पुत्री और जीड़ी बिरला की पोती हैं-शोभना राज्यसभा की
सदस्या भी हैं जिन्हें सोनिया ने नामांकित किया था।-शोभना को 2005 में
पद्मश्री भी मिल चुकी है।-शोभना भरतिया सिंधिया परिवार की भी नज़दीकी
मित्र हैं।-करण थापर भी हिन्दुस्तान टाइम्स में कालम लिखते हैं।-पत्रकार
एन राम की भतीजी की शादी दयानिधि मारन से हुई है।
यह बात साबित हो चुकी है कि मीडिया का एक खास वर्ग हिन्दुत्व का विरोधी
है, इस वर्ग के लिये भाजपा-संघ के बारे में नकारात्मक प्रचार करना,
हिन्दू धर्म, हिन्दू देवताओं, हिन्दू रीति-रिवाजों, हिन्दू साधु-सन्तों
सभी की आलोचना करना एक “धर्म” के समान है। इसका कारण हैं,
कम्युनिस्ट-चर्चपरस्त-मुस्लिमपरस्त-तथाकथित सेकुलरिज़्म परस्त लोगों की
आपसी रिश्तेदारी, सत्ता और मीडिया पर पकड़ और उनके द्वारा एक “गैंग” बना
लिया जाना। यदि कोई समूह या व्यक्ति इस गैंग के सदस्य बन जायें, प्रिय
पात्र बन जायें तब उनके और उनकी बिरादरी के खिलाफ़ कोई खबर आसानी से नहीं
छपती। जबकि हिन्दुत्व पर ये सब लोग मिलजुलकर हमला बोलते
हैं|………..

2010 in review

The stats helper monkeys at WordPress.com mulled over how this blog did in 2010, and here’s a high level summary of its overall blog health:

Healthy blog!

The Blog-Health-o-Meter™ reads This blog is doing awesome!.

Crunchy numbers

Featured image

A Boeing 747-400 passenger jet can hold 416 passengers. This blog was viewed about 2,100 times in 2010. That’s about 5 full 747s.

In 2010, there were 51 new posts, not bad for the first year! There were 50 pictures uploaded, taking up a total of 6mb. That’s about 4 pictures per month.

The busiest day of the year was June 11th with 43 views. The most popular post that day was ठीकरा फोड़कर मीडिया जिम्मेदारी से नहीं बच सकता.

Where did they come from?

The top referring sites in 2010 were mediamughal.com, chitthajagat.in, google.co.in, hi.wordpress.com, and WordPress Dashboard.

Some visitors came searching, mostly for मीडिया की भूमिका, bhadash.com, bhadash, pradesh today, and pradeshtoday.com.

Attractions in 2010

These are the posts and pages that got the most views in 2010.

1

ठीकरा फोड़कर मीडिया जिम्मेदारी से नहीं बच सकता June 2010
1 comment and 1 Like on WordPress.com,

2

कितनी अहम है मीडिया की भूमिका July 2010
1 comment

3

Pradesh Today Required Dgm Marketing in Bhopal, Indore, Jabalpur, Gwalior September 2010
1 comment

4

हिन्दू का इतिहास: सऊदी अरब में शोध June 2010

5

ये गुण एक होने चाहिए अच्छे पत्रकार में July 2010

ताजमहल तो एक हिन्दू मंदिर था

for details pl click link

आपने पुलिस के लिये क्या किया है?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
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मैं जहाँ कहीं भी लोगों के बीच जाता हूँ और भ्रष्टाचार, अत्याचार या किसी भी प्रकार की नाइंसाफी की बात करता हूँ, तो सबसे पहले सभी का एक ही सवाल होता है कि हमारे देश की पुलिस तो किसी की सुनती ही नहीं। पुलिस इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि अब तो पुलिस से किसी प्रकार के न्याय की या संरक्षण की आशा करना ही बेकार है। और भी बहुत सारी बातें कही जाती हैं।

मैं यह नहीं कहता कि लोगों की शिकायतें गलत हैं या गैर-बाजिब हैं! मेरा यह भी कहना नहीं है कि पुलिस भ्रष्ट नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि हम में से जो लोग इस प्रकार की बातें करते हैं, वे कितने ईमानदार हैं? उनमें से ऐसे कितने हैं, जिन्होने कभी जून के महिने में चौराहे पर खडे यातायात हवलदार या सिवाही से पूछा हो कि भाई तबियत तो ठीक है ना, पानी पिया है या नहीं?

हम से कितने हैं, जिन्होंने कभी थाने में जाकर थाना प्रभारी को कहा हो कि मैं आप लोगों की क्या मदद कर सकता हूँ? आप कहेंगे कि पुलिस को हमारी मदद की क्या जरूरत है? पुलिसवाला भी एक इंसान ही है। जब हम समाज में जबरदस्त हुडदंग मचाते हैं, तो पुलिसवालों की लगातर कई-कई दिन की ड्यूटियाँ लगती हैं, उन्हें नहाने और कपडे बदलने तक की फुर्सत नहीं मिलती है। ऐसे में उनके परिवार के लोगों की जरूरतें कैसे पूरी हो रही होती हैं, कभी हम इस बात पर विचार करते हैं? ऐसे समय में हमारा यह दायित्व नहीं बनता है कि हम उनके परिवार को भी संभालें? उनके बच्चे को, अपने बच्चे के साथ-साथ स्कूल तक ले जाने और वापस घर तक छोडने की जिम्मेदारी निभाकर देखें?

यात्रा करते समय गर्मी के मौसम में चौराहे पर खडे पुलिसवाले को अपने पास उपलब्ध ठण्डे पानी में से गाडी रोककर पानी पिलाकर देखें? पुलिसवालों के आसपास जाकर पूछें कि उन्हें अपने गाँव, अपने माता-पिता के पास गये कितना समय हो गया है? पुलिस वालों से पूछें कि दंगों में या आतंक/नक्सल घटनाओं में लोगों की जान बचाते वक्त मारे गये पुलिसवालों के बच्चों के जीवन के लिये हम क्या कर सकते हैं? केवल पुलिस को हिकारत से देखने भर से कुछ नहीं हो सकता? हमेशा ही नकारत्मक सोच रखना ही दूसरों को नकारात्मक बनाता है।

हम तो किसी कानून का या नियम का या व्यवस्था का पालन नहीं करें और चाहें कि देश की पुलिस सारे कानूनों का पालन करे, लेकिन यदि हम कानून का उल्लंघन करते हुए भी पकडे जायें तो पुलिस हमें कुछ नहीं कहे? यह दौहरा चरित्र है, हमारा अपने आपके बारे में और अपने देश की पुलिस के बारे में।

कई वर्ष पहले की बात है, मुझे सूचना मिली कि मेरे एक परिचित का एक्सीडेण्ट हो गया है। मैं तेजी से गाडी चलाता हुआ जा रहा था, मुझे इतना तनाव हो गया था कि मैं सिग्नल भी नहीं देख पाया और लाल बत्ती में ही घुस गया। स्वाभाविक रूप से पुलिस वाले ने रोका, तब जाकर मेरी तन्द्रा टूटी।

मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मैंने पुलिसवाले के एक शब्द भी बोलने से पहले पर्स निकाला और कहा भाई जल्दी से बताओ कितने रुपये देने होंगे। पुलिसवाला आश्चर्यचकित होकर मुझे देखने लगा और बोला आप कौन हैं? मैंने अपना लाईसेंस दिखाया। उसने जानना चाहा कि “आप इतनी आसानी से जुर्माना क्यों भर रहे हैं।” मैंने कहा गलती की है तो जुर्माना तो भरना ही होगा।

अन्त में सारी बात जानने के बाद उन्होनें मुझसे जुर्माना तो लिया ही नहीं, साथ ही साथ कहा कि आप तनाव में हैं। अपनी गाडी यहीं रख दें और उन्होनें मेरे साथ अपने एक जवान को पुलिस की गाडी लेकर मेरे साथ अस्पताल तक भेजा। ताकि रास्ते में मेरे साथ कोई दुर्घटना नहीं हो जाये?

हमेशा याद रखें कि पुलिस की वर्दी में भी हम जैसे ही इंसान होते हैं, आप उनको सच्ची बात बतायें, उनमें रुचि लें और उनको अपने बीच का इंसान समझें। उन्हें स्नेह और सम्मान दें, फिर आप देखें कि आपके साथ कैसा बर्ताव किया जाता है। आगे से जब भी कोई पुलिस के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करे तो आप उससे सीधा सवाल करें कि-“आपने पुलिस के लिये क्या किया है?”

दिवाली मनाने का औचित्य क्या है?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

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हमारे पूर्वजों द्वारा लम्बे समय से दिवाली के अवसर पर रोशनी हेतु दीपक जलाये जाते रहे हैं। एक समय वह था, जब दीपावली के दिन अमावस की रात्री के अन्धकार को चीरने के लिये लोगों के मन में इतनी श्रृद्धा थी कि अपने हाथों तैयार किये गये शुद्ध घी के दीपक जलाये जाते थे। समय बदला और साथ ही साथ श्रृद्धा घटी या गरीबी बढी कि लोगों ने घी के बजाय तेल के दिये जालाने की परम्परा शुरू कर दी।

समय ने विज्ञान के साथ करवट बदली माटी का दीपक और कुम्हार भाईयों का सदियों पुराना परम्परागत रोजगार एक झटके में छिन गया। दिवाली पर एक-दो सांकेतिक दीपक ही मिट्टी के रह गये और मोमबत्ती जलने लगी। अब तो मोमबत्ती की उमंग एवं चाह भी पिघल चुकी है। विद्युत की तरंगों के साथ दीपावली की रोशनी का उजास और अन्धकार को मिटाने का सपना भी निर्जीव हो गया लगता है।

दीपक जलाने से पूर्व हमारे लिये विचारणीय विषय कुछ तो होना चाहिये। आज के समय में मानवीय अन्धकार के साये के नीचे दबे और सशक्त लोगों के अत्याचार से दमित लोगों के जीवन में उजाला कितनी दूर है? क्या दिवाली की अमावस को ऐसे लोगों के घरों में उजाला होगा? क्या जरूरतमन्दों को न्याय मिलने की आशा की जा सकती है? क्या दवाई के अभाव में लोग मरेंगे नहीं? क्या बिना रिश्वत दिये अदालतों से न्याय मिलेगा? दर्द से कराहती प्रसूता को बिना विलम्ब डॉक्टर एवं नर्सों के द्वारा संभाला जायेगा? यदि यह सब नहीं हो सकता तो दिवाली मनाने या दीपक जलाने का औचित्य क्या है?

हमें उन दिशाओं में भी दृष्टिपात करना होगा, जिधर केवल और अन्धकार है! क्योंकि अव्यवस्था एवं कुछेक दुष्ट, बल्कि महादुष्ट एवं असंवेदनशील लोगों की नाइंसाफी का अन्धकार न केवल लोगों के वर्तमान एवं भविष्य को ही बर्बाद करता रहा है, बल्कि नाइंसाफी की चीत्कार नक्सलवाद को भी जन्म दे रही है। जिसकी जिनगारी हजारों लोगों के जीवन को लील चुकी है और जिसका भष्टि अमावश की रात्री की भांति केवल अन्धकारमय ही नजर आ रहा है। आज नाइंसाफी की चीत्कार नक्सलवाद के समक्ष ताकतवर राज्य व्यवस्था भी पंगु नजर आ रही है। आज देश के अनेक प्रान्तों में नक्सलवाद के कहर से कोई नहीं बच पा रहा है!

अन्धकार के विरुद्ध प्रकाश या नाइंसाफी के विरुद्ध इंसाफ के लिये घी, तेल, मोम या बिजली के दीपक या उजाले तो मात्र हमें प्रेरणा देने के संकेतभर हैं। सच्चा दीपक है, अपने अन्दर के अन्धकार को मिटाकर उजाला करना! जब तक हमारे अन्दर अज्ञानता या कुछेक लोगों के मोहपाश का अन्धकार छाया रहेगा, हम दूसरों के जीवन में उजाला कैसे बिखेर सकते हैं।

अत: बहुत जरूरी है कि हम अपने-आपको अन्धेरे की खाई से निकालें और उजाले से साक्षात्कार करें। अत: दिवाली के पावन और पवित्र माने जाने वाले त्यौहार पर हमें कम से कम समाज में व्याप्त अन्धकार को मिटाने के लिये नाइंसाफी के विरुद्ध जागरूकता का एक दीपक जलाना होगा, क्योंकि जब जागरूक इंसान करवट बदलता है तो पहा‹डों और समुद्रों से मार्ग बना लेता है। इसलिये इस बात को भी नहीं माना जा सकता कि मानवता के लिये कुछ असम्भव है। सब कुछ सम्भव है। जरूरत है, केवल सही मार्ग की, सही दिशा की और सही नेतृत्व की। आज हमारे देश में सही, सशक्त एवं अनुकरणीय नेतृत्व का सर्वाधिक अभाव है।

किसी भी राष्ट्रीय दल, संगठन या समूह के पास निर्विवाद एवं सर्वस्वीकार्य नेतृत्व नहीं है। सब काम चलाऊ व्यवस्था से संचालित है। पवित्रा के प्रतीक एवं धार्मिक कहे जाने वाले लोगों पर उंगलियाँ उठती रहती हैं। ऐसे में आमजन को अपने बीच से ही मार्ग तलाशना होगा। आमजन ही, आमजन की पीडा को समझकर समाधान की सम्भावनाओं पर विचार कर सकता है। अन्यथा हजारों सालों की भांति और आगे हजारों सालों तक अनेकानेक प्रकार के दीपक जलाते जायें, यह अन्धकार घटने के बजाय बढता ही जायेगा।

-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’) : जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र प्रेसपालिका के सम्पादक, होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषय के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें 05 नवम्बर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.

अजीब नहीं लगता आपको..?

अजीब नहीं लगता आपको..?

क्या आपने वो पुराना वाला हेण्डपंप देखा है जिसमें से पानी निकालने के लिए पहले उसमें थोड़ा पानी डालना पड़ता है. अब ऐसे हेण्डपंप नहीं मिलते लेकिन गांव में दिखाई दे जाते हैं. मैं अपने गांव में कई बार गया लेकिन इस बार जो दिखा वो पहले कभी नहीं दिखा. मैं अपने बचपन के दोस्तों के साथ अलसुबह पहाड़ पर घूमने के लिए निकल गया था. वापस आते आते दोपहर हो गई. अब हम मैदान में थे और मुझे बहुत तेज प्यार लग रही थी. मेरे दोस्त ने हेण्डपंप की ओर इशारा किया और हम वहां जा पहुंचे. मैने भागकर उसका हेण्डल चलाना शुरू किया लेकिन पानी बाहर ही नहीं निकला. तब मेरे दोस्त ने कहा जरा रुको. वो पास में रखी एक बाल्टी उठाकर झरने की ओर गया और कुछ पानी भरकर ले आया. उसने हेण्डपंप के ऊपर से उसमें पानी डालना शुरू किया और मैंने हेण्डल चलाना. कुछ ही देर में ठण्डा और मीठा पानी बाहर निकल आया. इस प्रक्रिया को हेण्डपंप को प्राइम करना कहते हैं. पहले थोड़ा पानी डालना पड़ता है तब उसमें से पीने योग्य पानी निकलने लगता है.

जीवन का खेल भी तो कुछ ऐसा ही है, पहले कुछ डालना पड़ता है तब कुछ मिलना शुरू होता है लेकिन कई बार बड़ी अजीब सी चीजें दिखाई देतीं हैं. कुछ लोग चूल्हे के सामने खड़े हो जाते हैं और कहते हैं पहले मुझे अच्छी ऊर्जा दो फिर मैं तुम्हे अच्छा ईंधन दूंगा.

हां ऐसा ही होता है. कई बार सचिव अपने बॉस से कहता है पहले मेरा वेतन बढ़ाओ फिर में अच्छा काम करूंगा जैसा कि आप चाहते हैं. सेल्समैन अपने जनरल मैनेजर से कहता है पहले मुझे मैनेजर बनाओ फिर में अच्छी बिक्री करूंगा. लोग अक्सर यह कहते हुए सुनाई देते हैं कि यदि मुझे बॉस बनाया जाए तो और ज्यादा बेहतर कर सकूंगा.

मैं समझ नहीं पा रहा कि कैसे कोई किसान ईश्वर से कह सकता है कि पहले मुझे फसल दो फिर मैं बीज डालूंगा. कोई क्रिकेट खिलाड़ी कैसे कह सकता है कि यदि आप मुझे मैन ऑफ द मैच घोषित कर दें तो मैं शतक बना दूंगा. अजीब नहीं लगता आपको..? आपको नहीं लगता ऐसे लोग मनमाफिक प्रतिफल न मिलने के कारण अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं, जबकि सभी जानते हैं कि ऊर्जा का या तो उपयोग किया जा सकता है या वह अपने आप नष्ट हो जाती है और कभी कभी विस्फोटक भी हो जाती है लेकिन उसे स्टोर नहीं किया जा सकता.

(उपदेश अवस्थी)

कोई नया हथियार बनाना चाहिए

 यदि मैं आपके घर आऊं और आपके साफ सुथरे ड्राइंग रूम के फर्श पर आपके कालीन या गलीचे के ऊपर एक बाल्टी कचरा डाल दूं तो क्या होगा.

तीन में से एक स्थिति बनेगी.
या तो आप मेरी धुनाई कर देंगे या फिर पूरी दुनियां में मेरी शिकायत करते घूमेंगे और लोगों को बताएंगे कि मैं कितना पागल आदमी हूं.

इसके अलावा यह हो सकता है कि आप अपनी बंदूक उठाएं और कहें कि उपदेश जी मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि आप इस फर्श अभी साफ करोगे. मैं भी शर्त लगाकर कह सकता हूं कि मैं वैसा ही करूंगा जैसा कि आपने बोला. सच तो यह है कि मैं उसे इतना बेहतरीन साफ करूंगा कि आपको शिकायत का कोई मौका ही न मिले.

मजेदार तो यह है कि मेरे ऐसा करने के बाद भी आप लोगों को बताएंगे कि मैने क्या था और आपने कैसे मुझे जबाव दिया. आप कई दिनों तक और हो सकता है कई सालों तक यह दोहराते रहे और बताते रहें कि मेरा कमरा गंदा करने वाले को मैने कैसी सजा दी.

लेकिन उन लोगों के साथ आप क्या करते हैं जिन्होंने आपके दिमाग में कचरा डाल दिया है और डालते ही जा रहे हैं.

उन लोगों के साथ आपका व्यवहार कैसा होता है जो आपको मक्कारी करने के लिए, काम न करने के लिए, ऑफिस में इन्टरनेट पर चैटिंग करते रहने के लिए, रिश्वत लेने के लिए या भ्रष्टाचार करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. वो आपको कई तरह के तर्क देते हैं आपके सामने आपके संस्थान और नियोक्ता की बुराई करते हैं और बताते हैं कि पूरी दुनिया चोरों से भरी हुई है इसलिए इसमें कोई बुराई नही कि तुम भी चोरी करो.

ऐसे लोग आपको आपके ईश्वर से, आपके देश से, आपके (अच्छे लोगों) समाज से दूर कर देते हैं आपको एक बुरा, मतलबी और लालची जानवर (गंदे कचरे का डब्बा) बना देते हैं.
ऐसे लोगों के साथ आप क्या करते हैं ..?

आप बुदबुदा सकते हैं कि मुझे ऐसे लोग भ्रमित नहीं कर पाते, उन्हें बोलने दो लेकिन मैं अपने दिल की बात सुनता हूं, दिमाग से सोचता हूं, लेकिन दोस्त मैं आपको बता दूं कि यहीं पर आप गलत हैं. जो व्यक्ति आपके दिमाग में कचरा डालता है वह आपके फर्श पर कचरा डालने वाले से ज्यादा खतरनाक है. क्या आपको नहीं लगता ऐसे लोगों से निपटने के लिए कोई नया हथियार बनाना चाहिए.

उपदेश अवस्थी

लेखक एक युवा पत्रकार है जो अपने देश और देशवासियों से बहुत प्यार करता है.

JAGO INDIA JAGO

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Indian Member of Parliament

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Salary 42000

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Office Expenses 14000

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Train Ticket Free

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Flight to Delhi Free

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MP Hostel Free

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Electricity 50000 Unit Free

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Local Phone 170000 Calls Free

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Total Expenses 3200000

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For 5 Years 16000000

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For 543 MP’s 855 Crores.

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This is how all our tax money’s swallowed

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& price hike on daily needs.

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Each citizen needs to know this.

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Jago India Jago

पत्रकारों की ये कैसी हवस

पत्रकारों की ये कैसी हवस

उपदेश अवस्थी :-

बड़ा अजीब सा लग रहा है. मेरे लिए तो जैसे ये एक कभी न भूलने वाला संस्मरण हो गया. तब से लेकर आज तक मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि अखबारों के समाचार विभागों में बैठे बुद्धिजीवि आखिर किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

यह 24 अप्रैल 2010 की बात है. मेरी मुलाकात एक ऐसे पत्रकार से हुई जिसकी तारीफ कई वरिष्ठ पत्रकार का चुके थे. मेरी जिज्ञासा भी थी कि उसे देखूं, बात करूं आखिर कौन है वो जिसकी तारीफ के पुल बांधे जा रहे हैं.

मेरा पहला सवाल था:  आपकी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है..?
उसने एक फोल्डर मेरे सामने रखा जिसमें कुछ कागज बड़े ही क्रमबद्ध और सलीके से लगे हुए थे.
सबसे पहले कागज में एक खबर की छायाप्रति थी. खबर यह थी कि ग्रामीण क्षेत्र के कुछ आधा सैकड़ा से ज्यादा हेण्डपंपों से लगातार दूषित पानी निकल रहा था, जिसको पीने से 1 मासूम बालक की मौत हो चुकी थी और कई बच्चे बीमार हो गए थे. यह सिलसिला लगातार चल रहा था. करीब दो दर्जन गांव इस संकट से त्रस्त थे. उनके पास पेयजल के लिए कोई दूसरा स्त्रोत भी नहीं था. समाचार का प्रस्तुतिकरण बहुत ही शानदार था. उसने बड़े ही मार्मिक शब्दों में लिखा था कि गांववाले निर्णय नहीं कर पा रहे कि वो अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए गांव में रुकें या अपने बच्चों की जान बचाने के लिए पलायन कर जाएं.
दूसरे कागज में उस खबर के फालोअप की छायाप्रति थी. फालोअप में लिखा था कि प्रतिष्ठित समाचार पत्र द्वारा मुद्दे को उठाते ही प्रशासन ने उसे गंभीरता से लिया और इस अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार संबंधित विभाग (लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग) के चार अधिकारियों को तत्काल निलंबित कर दिया.
तीसरे कागज में एक पत्र था जिसमें समाचार विभाग द्वारा उसकी प्रशंसा की गई एवं उसे अवार्ड भी दिया गया.
जैसे ही मैने फोल्डर के इस तीसरे और आखिरी पन्ने पर नजर डाली, उस नौजवान युवक की आंखें चमक उठीं. मैने वापस तीनों पन्नों को पलटा, फिर युवक को देखा, फिर पन्ने पलटे और फोल्डर बंद कर दिया.
मैने उस युवक से पूछा :- क्या यह तुम्हारा अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है..?
उसने कहा :- जी हां, क्योंकि यह मेरे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा प्रमाणित भी है.
मैने पूछा :- इसमें तुम्हारी उपलब्धि क्या है..?
उसने कहा :- खबर छपते ही चार बड़े अधिकारियों को निलंबित करना पड़ा.
उसका जबाव सुनकर मैं चुप रह गया.

मैं अब तक पशोपेश में हूं, समझ ही नहीं पा रहा हूं कि यह किस रास्ते पर जा रहे हैं मैंदानों में मौजूद मीडिया के ऊर्जावान नौजवान.

मैं पशोपेश में हूं कि इस खबर के पीछे उस नौजवान पत्रकार का लक्ष्य क्या था..? चार अधिकारियों को निलंबित कराना या उन आधा दर्जन गावों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना..?

फालोअप क्या होना चाहिए था..? कब तक चलना चाहिए था..? उस ऊर्जावान पत्रकार ने वापस गांवों में जाकर हालात का जायजा क्यों नहीं लिया…? उन बीमार बच्चों को इलाज मिला या नहीं..? उस मारे गए मासूम के परिजनों के आंसू किसी ने पौंछे या नहीं..? इन सवालों के जबाव तो तलाशे ही नहीं गए..? निलंबन की कार्रवाई होते ही बेस्ट रिपोर्टर का अवार्ड थमा दिया गया.

मुझे लगता है इस प्रकरण में उस नौजवान रिपोर्टर के ब्यूरोप्रमुख जो उसका स्थानीय नेतृत्वकर्ता है, उपसंपादक जिसने इस खबर को प्रमुखता दी. प्रांतीय संपादक जिसने उप संपादक से सहमत होते हुए अवार्ड के लिए सिफारिश की और संपादक जिसने अवार्ड प्रदान किया. चारों को निलंबित कर दिया जाना चाहिए.

क्या आपको नहीं लगता दण्डित किया जाना चाहिए.

ये कैसी हवस है जो अधिकारियों के निलंबन से शांत होती है, जबकि समस्याएं जस की तस बनी रहतीं हैं.

एक पत्रकार होने के नाते उनका क्या धर्म है..? अपने देश में मौजूद समस्याओं को शासन-सत्ता तक पहुंचाना और आमनागरिकों के हितों की रक्षा करना, यही ना या कुछ और.
क्या उस ऊर्जावान युवक को पुरुस्कृत करके वरिष्ठ गुरूजनों ने उसे उसके निर्धारित लक्ष्य से हमेशा-हमेशा के लिए भटका नहीं दिया..? क्या अब वह जीवन में कभी भी अपने मूल लक्ष्य की ओर वापस आ पाएगा..?

एक युवक के भीतर मौजूद प्रतिभा की समारोहपूर्वक हत्या का यह प्रकरण मुझे निश्चिंत होने नहीं दे रहा. मैं कोई समाजसेवी नहीं हूं, कोई देशभक्ति का तमगा भी नहीं चाहता. मेरी चिंता का विषय तो केवल इतना है कि जैसा इस मामले में हुआ एक पथभ्रष्ट युवक को दिशा दिखाने के बजाए पुरस्कृत कर दिया गया, पूरे देश में होता होगा. कितनी सारी प्रतिभाओं की भ्रूण हत्या हो रही है. उन्हे मानसिक रूप से विकलांग बनाया जा रहा है, लक्ष्य से भटकाया जा रहा है.

कृपया इस विषय पर अपने विचार अवश्य प्रकट कीजिए. एक लम्बी बहस जाने दीजिए. एक अच्छे निर्णय तक पहुंच सकें, सभी एकमत हो सकें इस उद्देश्य से यह विषय प्रस्तुत कर रहा हूं. केवल पढ़कर बंद मत कीजिए. या तो भाग लीजिए या प्रण कीजिए कि कभी पत्रकारिता की दिशा और दशा के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.

कृपया कमेंट पोस्ट न करें

विषय कोई नया नहीं है. कई बार चर्चाओं में आ चुका है लेकिन इस विषय पर अभी तक कोई राष्ट्रीय नीति निर्देश जारी नहीं हुए अत: आप सभी के विचारार्थ प्रस्तुत कर रहा हूं.

यह एक ऑनलाइन सेमीनार है और मैं आप सभी को सादर आमंत्रित करता हूं एवं निवेदन करता हूं कि कृपया कमेंट पोस्ट न करें, बल्कि अपने-अपने शहरों में शोध करके शोधपत्र प्रस्तुत करें।

 

विषय है:- क्या शिक्षण संस्थाओं में मोबाइल का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए..?

 

अभी तक अलग-अलग स्कूल, कॉलेजों के प्रबंधन अलग-अलग व्यवस्थाएं लागू कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में झंझट खड़ा हो जाता है, कभी कभी कॉलेज प्रबंधन का विरोध भी होता है.

कुछ लोग इसके पक्ष में हैं और कुछ विरोध मैं. मैं चाहता हूं कि आप केवल अपने विचार प्रकट न करें बल्कि अपने पास-पड़ौसियों एवं मित्रों से पूछताछ करें. पता करें विद्यार्थियों के माता-पिता इस विषय पर क्या सोचते हैं. विद्यार्थी वर्ग में युवकों की सोच क्या है और युवतियों के विचार क्या हैं. इतना ही नहीं महाविद्यालय प्रबंधन इस बारे में क्या सोचता है..?

मुझे लगता है कि केन्द्र सरकार को इस विषय में कोई निर्देश जारी किया जाना चाहिए. यदि आप सभी की सहभागिता मिली तो अंतत: हम इस सेमीनार के निष्कर्ष पर पहुंचेंगे और उससे भारत के प्रधानमंत्री के कार्यालय को अवगत कराएंगे. शायद अपना प्रयास कुछ परिणाम लेकर आए नहीं भी आया तो एक अभ्यास तो हो ही जाएगा खोजबीन करने का. कृपया कमेंट ऑप्शन में लिखने के बाद अपना नाम व शहर का नाम अवश्य लिखें. आप चाहें तो मुझे सीधे मेल भी कर सकते हैं मेरा मेल एड्रेस है :-

updesh.twitter@gmail.com

यही है पत्रकारिता का लास्ट टारगेट

द हिन्दु ने चपरासी की बेटी को दिलाई सफलता

 

दुनिया के तमाम स्वयं सेवी संगठन जो बेटी बचाओ अभियान में जुटे हैं, महिलाओं के मुद्दों पर काम कर रहे हैं, या महिलाओं के नाम राजनीति कर रहे हैं, पंजाब की सरकार और प्रत्येक वह नागरिक जो बेटी को बेटों के बराबर मानता है या मानने का ढोंग करता है, गर्व कर सकता है कि एक चपरासी की बेटी ने सिर्विल सर्विस की कठिन परीक्षा में सफलता पाई. डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर से उसकी तुलना भी कर सकते हैं, लेकिन यदि सचमुच किसी की पीठ थपथपाई जानी चाहिए तो वह है अंग्रेजी भाषा के प्रमुख अखबार द हिन्दु का प्रबंधन एवं संपादक मण्डल.
जी हां, वह संदीप कौर कल तक जिसकी पहचान पंजाब सरकार में कार्यरत एक चपरासी की बेटी के रूप में थी आज किसी पहचान की मौहताज नहीं रह गई अलबत्ता उसके पिता व परिवार की पहचान उससे होगी. उसने सिविल सर्विस परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली है. जिक्र-ए-खास तो यह है कि इस सफलता तक पहुंचने के लिए जिसने उसका साथ निभाया वह कोई भारत का कोई प्रसिद्ध इन्स्टीट्यूट नहीं बल्कि एक अखबार है. संदीप कौर का कहना है कि वह द हिन्दु अखबार के संपादकीय पेज को चाट डालती थी. नेशनल, इन्टरनेशल एक्टिविटीज की नॉलेज के लिए भी वह इसी अखबार पर निर्भर थी. उसकी जानकारी बढ़ाने का जरिया मात्र और मात्र द हिन्दु अखबार था. उसके जीवन में इस अखबार की प्रमुखता देखिए कि जब वह गांव जाती थी तो उसके पिता व भाई 20 किलोमीटर दूर जाते थे उसके लिए अखबार लेने. कभी किसी दिन यदि अखबार नहीं मिला तो वह ऐजेन्ट के यहां सुरक्षित रखा रहता था और जब भी संदीप वापस आती उसे एक साथ पूरी प्रतियां दी जातीं.
संदीप कौर को मिली इस सफलता मीडियावल्र्ड को यह संदेश दे रही है कि पत्रकारिता का लास्ट टारगेट यही है. लोगों की जानकारी बढ़ाना, उन्हें जागृत करना. द हिन्दु की यह सफलता निश्चित रूप से पत्रकारिता के एक नए युग की शुरूआत है. इस सफलता के लिए मैं बधाई देना चाहता हूं द हिन्दु के प्रबंधन को इसलिए क्योंकि उन्होंने संपादक मण्डल को इस दिशा में काम करने का अवसर प्रदान किया और संपादक मण्डल को इसलिए क्योंकि उन्होंने आजादी का बेजा लाभ नहीं उठाया. अंग्रेजी अखबारों के खातों में सफलता की ऐसी कई कहानियां दर्ज हैं कुछ बड़े किस्से सभी को सुनाए जाते हैं जबकि कुछ प्रसंग छापे नहीं जाते. लोगों को मानना ही होगा कि फर्राट इंग्लिश बोलने वालों की कुल संख्या का कम से कम 30 प्रतिशत ऐसा है जिन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखने की शुरूआत किसी अंग्रेजी अखबार से की और बिना किसी इंग्लिश इन्स्टीट्यूट में पढ़े अंग्रेजी सीखी.
हमारे मध्यप्रदेश से भी एक ऐसा ही अखबार निकलता था नईदुनिया. मेरे स्व. नानाजी डॉ. राधेश्याम द्विवेदी (जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे) कहा करते थे कि यदि सही हिन्दी सीखना है तो नईदुनिया पढ़ा करो. कुछ दिनों बाद हालात यह हुए कि हिन्दी के शब्दों पर जब भी हमारी बहस होती हम नईदुनिया खोलकर बैठ जाते लेकिन अब उस नईदुनिया का प्रकाशन शायद बंद हो गया है. इस नाम से जो अखबार छपता है वह हिन्दी का अग्रदूत नहीं रहा. लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर हिन्दी अखबारों ने जिस तरह की धूम-धड़ाके वाली खबरों के पीछे भागना शुरू किया है वह निश्चित रूप से पत्रकारिता को उसके लक्ष्य से दूर कर रहा है. मैं पुन: दोहराना चाहता हूं कि पत्रकारिता का लास्ट टारगेट यही है. लोगों की जानकारी बढ़ाना, उन्हें जागृत करना. लोगों को सिखाना कि शिकायतें कैसे करें, अपने अधिकारों को कैसे प्राप्त करें. यदि अखबार लोगों को शिक्षित और योग्य बनाने में कामयाब हो गए तो मैं गारंटी देता हूं कि भ्रष्टïाचार, राजनीतिक मनमानी, अपराध और तमाम समस्याओं पर अंकुश अपने आप लगने लगेगा.

अंतत: मिल ही गई मदद

पत्रकार स्व. राजू गावंडे की पत्नि को मिला 4 लाख का चैक

उपदेश अवस्थी-

पत्रकारिता जगत की खबरों पर आधारित बेवसाइट भड़ास4मीडिया के माध्यम से शुरू किए गए प्रयास अंतत: रंग ले ही आए. सड़क दुर्घटना का शिकार हुए छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश के पत्रकार स्व. राजू गावंडे की पत्नि को बीते रोज 4 लाख रुपए बीमा रकम का चैक राज्यसभा सदस्य अनुसुईया उईके के हाथों प्रदान किया गया. सनद रहे कि राजू गावंडे की मृत्यु के बाद भड़ास के माध्यम से उसके परिवार के लिए आर्थिक मदद की मुहिम शुरू की गई थी और इसी के परिणाम स्वरूप पत्रकार बिरादरी में हलचल शुरू हुई, शोक संदेशों के प्रकाशन के बजाए छिंदवाड़ा के पत्रकारों ने उसके परिवार के भरण पोषण का इंतजाम कैसे हो इस विषय पर चिंता की और अंतत: एक संतोषजनक परिणाम आया.
प्रेस क्लब भवन में राज्यसभा सांसद ने अपने हाथों 4 लाख का चेक रजनी गावंडे को दिया। साथ ही रजनी को आश्वस्त किया कि वे अकेली नहीं है। वे और प्रेस क्लब हमेशा उनकी मदद के लिए तैयार है। श्रीमती रजनी गांवडे ने बताया कि अब उनका एक लक्ष्य है कि बेटी को पढ़ा लिखा कर अपने पैरों में खड़ा करना है.
विदित हो कि स्व. राजू गावंडे अपने परिवार का एकमात्र सहारा थे एवं उनकी असमय मृत्यु के बाद सबसे बड़ा संकट यह था कि उनके परिवार का पालन कैसे होगा..? भड़ास4मीडिया के माध्यम से अपील की गई थी कि कृपया शोकसभाएं आयोजित न करें बल्कि राजू गावंडे के परिवार को क्या-क्या आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा सकतीं हैं इस दिशा में काम करें. इस अपील के बाद प्रेस क्लब छिंदवाड़ा ने पहल करते हुए न केवल आर्थिक मदद जुटाई बल्कि अन्य स्तरों पर भी प्रयास किए. इधर राज एक्सप्रेस भोपाल में मुख्य प्रसार प्रबंधक के पद पर कार्यरत छिंदवाड़ा मूल के श्री हर्षित दुबे ने भी अपने स्तर पर प्रयास किए. सभी दिशाओं में हुए संयुक्त प्रयास का नतीजा यह रहा कि बीते रोज उनकी पत्नि को 4 लाख रुपए बीमा रकम का चैक प्राप्त हुआ.
निश्चित रूप से स्व. राजू गावंडे की कमी पूरी नहीं की जा सकती, लेकिन यह रकम उनकी बिटिया व परिवार के भरण पोषण में मददगार अवश्य रहेगी.

स्व. राजू गावंडे से संबंधित अन्य खबरें

Pease Help this innocent girl in finding out her parents….

The below 4yrs baby name POOJA was kidnapped by a person at some place and now she is under Kerala Police custody. Since the baby could not communicate her identification clearly, Police is struggling to find her parents. The following information was given by the baby which may or may not be correct also. Requesting all to forward her photograph to the maximum people in India to identify her parents / relatives. More

कहानी केलिफोर्निया के एक समौसे वाले की

यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने 52 साल की उम्र में अपनी करियर की शुरूआत की. बिजनेस शुरू किया और वह भी एक ऐसा बिजनेस जो उससे पहले किसी ने नहीं किया था. लोगों ने उसे बताया कि तुम सठिया गए हो लेकिन उसके इसी सठियापन ने उसे एक दिन दुनिया की सबसे बड़ी रेस्टोरेंट श्रंखला का मालिक बना दिया.

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